Thursday, October 15, 2009

अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप का मुनाफे का खेल

- विनोद अग्निहोत्री

अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (एडीएजी) को अपनी विदेशी उप कंपनियों के जरिए विदेशी पूँजी जुटाकर और फिर उसे दूसरी उप कंपनियों में लगाने और उन उप कंपनियों के शेयर ढाँचे में बदलाव करके खासी कमाई करने में महारत हासिल है।खोजबीन में कुछ ऐसे मामले मिले, जिनमें बड़ी सफाई से विदेशी पूँजी का अपनी उप कंपनियों में एक के बाद एक करके निवेश किया गया। कागजों पर उन उप कंपनियों के नियंत्रण तंत्र को बदला गया और फिर उन्हें अपनी दूसरी कंपनियों के दायरे में लाकर अपनी रकम को दोगुना-चौगुना किया गया।

इसे लेकर एडीएजी पर फेमा और दूसरे वित्तीय कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कई सांसदों ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को पत्र लिखकर रिजर्व बैंक और प्रवर्तन निदेशालय से जाँच कराने की माँग की है। प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) की एक उप कंपनी गेटवे नेट ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड सिंगापुर ने 2007 में स्टैंडर्ड चार्टर्ड और बर्कलेस बैंक सिंगापुर से 1500 मिलियन डॉलर की पूँजी उठाई। इस पूँजी को बर्कलेस और जेपी मार्गन चेज में निवेश किया गया।आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इससे रिलायंस पॉवर लिमिटेड के आईपीओ लाने से पहले शेयर बाजार ऊपर उठ गया। इस निवेश के जरिए एडीएजी समूह ने भारत में अपनी अन्य कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाली वित्तीय संस्थाओं के लिए कोलेट्रल सिक्योरिटी देने की पेशकश की।इससे शेयर बाजार ऊपर उठ गया और रिलायंस पॉवर के आईपीओ में निवेश में खासी वृद्धि हुई।

31 मार्च 2008 को आरकॉम ने गेटवे नेट ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड को अपने नियंत्रण से बाहर करते हुए एक अमेरिकी डॉलर के मूल्य पर अपने दस लाख इक्विटी शेयरों ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड की कंपनी यारमोथ इंटरप्राइजेज लिमिटेड को जारी कर करीब 91 प्रतिशत अपने मालिकाना हित छोड़ दिए।जुलाई 2008 में यारमोथ इंटरप्राइजेज लिमिटेड ने ये शेयर जर्सी चैनल आइलैंड स्थित कंपनी समरहिल लिमिटेड को बेच दिए। एक अक्टूबर 2008 को समरहिल लिमिटेड ने यह शेयर रिलायंस ग्लोबलकॉम बीवी नीदरलैंड्स को बेच दिए, जो कि आरकॉम की शत प्रतिशत उप कंपनी है।

वित्तीय नियमों का उल्लंघन करके विदेशी पूँजी का अपनी उप कंपनियों में निवेश के जरिए शेयर बाजार को प्रभावित करने के एक और मामले का पता लगा।अक्टूबर 2007 में आरकॉम ने 1000 मिलियन डॉलर की रकम का निवेश रिलायंस इन्फोकॉम बीवी, जिसका नया नाम रिलायंस ग्लोबलकॉम बीवी (आरजीबीवी) है, के प्रिफ्रेंशियल शेयरों में किया।

आरजीबीवी ने इस रकम में से 500 मिलियन डॉलर का निवेश अपनी एक उप कंपनी फ्लैग पैसिफिक होल्डिंग्स लिमिटेड बरमूडा के पाँच लाख प्रिफ्रेंशियल शेयरों में किया।एक नवंबर 2007 को फ्लैग पैसिफिक होल्डिंग्स ने 500 मिलियन डॉलर फ्लैग प्रोजेक्टस प्राइवेट लिमिटेड (फ्लैग प्रोजेक्ट्स) सिंगापुर को नेक्स्ट जनरेशन नेटवर्क (एनजीएन) की परियोजना के लिए अग्रिम पूँजी के रूप में हस्तांतरित कर दिए।इस मामले की शिकायत करने वाले सांसदों का आरोप है कि इतनी बड़ी रकम के निवेश के लिए इस कंपनी को इसलिए चुना गया जिससे कि सरकारी एजेंसियों और शेयरधारकों को भ्रमित किया जा सके कि यह निवेश आरकॉम की उप कंपनी फ्लैग में किया गया है।

जबकि वास्तविकता यह है कि फ्लैग प्रोजेक्टस प्राइवेट लिमिटेड सिंगापुर निवासी एक भारतीय मूल के व्यक्ति की है। इसके पहले के और मौजूदा निदेशक वे लोग हैं, जो एडीएजी के साथ जुड़े रहे हैं। 500 डॉलर की इस रकम को आरकॉम के समग्र खातों में "कैपिटल वर्क्स इन प्रोग्रेस" के एडवांस के रूप में दिखाया गया है। आरोप है कि ऐसा विदेश में किसी दूसरी कंपनी में इतने बड़े निवेश को शेयरधारकों से छिपाने के लिए किया गया।इस कंपनी ने एसीआरए सिंगापुर में अपने खाते नहीं जमा किए, जिससे इस रकम का आगे क्या हुआ इसका भी पता नहीं चलता है। लेकिन अनिल अंबानी समूह का सरकार और राजनीतिक गलियारों में दबदबा इस कदर है कि कांग्रेस और भाजपा के कई नेता इस मामले पर प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं।

Tuesday, October 13, 2009

आरकॉम पर लगी तोहमत

बिजनेस स्टेंडर्ड से साभार

अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) पर भी धांधली की तोहमत लग गई है।

दूरसंचार विभाग की ओर से नियुक्त विशेष ऑडिटर ने कहा है कि कंपनी ने अपनी कमाई कम करके बताई है और इस तरह सरकार को चूना लगा दिया है। ऑडिटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूरसंचार नियामक ट्राई को कंपनी ने वित्त वर्ष 2006-07 और 2007-08 में अपनी कमाई वास्तविक से कम बताई है।

इस तरह उसने कुल मिलाकर 2799.19 करोड़ रुपये की कमाई छिपा ली है। इस कारण सरकार को लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क में 315.9 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है क्योंकि ये शुल्क कमाई पर आधारित होते हैं। सरकार कंपनी की कमाई का 6 से 10 फीसदी हिस्सा लाइसेंस शुल्क के तौर पर लेती है और वायरलेस कारोबार से होने वाली कमाई का 2 से 6 फीसदी हिस्सा स्पेक्ट्रम शुल्क के तौर पर वसूला जाता है।

दूरसंचार विभाग ने कुछ महीने पहले परख ऐंड कंपनी को आरकॉम के विशेष ऑडिट का जिम्मा सौंपा था क्योंकि भारतीय सेल्युलर ऑपरेटर संघ ने कंपनी पर धांधली का आरोप लगाया था। ऑडिटरों से कहा गया था कि कंपनी ने ट्राई और स्टॉक एक्सचेंजों में अपनी जो कमाई बताई है, उसकी पड़ताल करें।
इस मसले पर बढ़ते विवाद के बीच विभाग ने सभी ऑपरेटरों की कमाई के आंकड़े खंगाले। इनमें भारती एयरटेल, टाटा टेलीसर्विसेज, वोडाफोन एस्सार भी शामिल थीं।

इस बारे में पूछे जाने पर आर कॉम ने कहा कि विशेष ऑडिटर ने अपनी रिपोर्ट के बारे में कंपनी से बात नहीं की है और न ही उसकी प्रति मुहैया कराई है।

कंपनी ने कहा, 'ऑडिटर ने जो आरोप लगाए हैं, वे पक्षपाती हैं और शायद उन्होंने प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के उकसावे पर ही ऐसा किया है। गोपनीय रिपोर्ट का पहले से ही मीडिया के पास पहुंच जाना ही विशेष ऑडिटर के पूर्वाग्रह का सबूत है।'

आरकॉम के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि विशेष ऑडिट पर उसे दूरसंचार विभाग की ओर से कोई पत्र नहीं मिला है। कंपनी के खातों में दोनों वित्त वर्षों की सही कमाई दर्ज की गई है और उनमें किसी तरह की धांधली नहीं है।

आरकॉम पर लग गया कमाई छिपाने का आरोपदूरसंचार विभाग के ऑडिटर का खुलासासरकार को 315.9 करोड़ रुपये का हुआ नुकसानकंपनी ने किया आरोपों से साफ इनकार, कहा दुर्भावना का नतीजा

दूसरा 'सत्यम' बनने की तैयारी में एडीए समूह!!

हाल ही की जाँच-पडताल के चलते लग रहा है कि अनिल अंबानी रामलिंगम राजू के नक्शे-कदम पर चल पड़े है। इनकी कुछ कंपनियाँ - सिंगापुर की एक अनलिमिटेड कंपनी "इमर्जिंग मार्केट्स एंड इन्वेस्टमेंट पीटीई, सिंगापुर" (इमिट्स) का स्वामित्व "रिलायंस इनोवेंचर्स प्रा. लि."(आरआईपीएल), जिसे अनिल अंबानी की पर्सनल इन्वेस्टमेंट कंपनी माना जाता है, के पास है। इमिट्स का पुराना नाम रिलायंस प्रोजेक्ट्स पीटीई है।


इमिट्स ने 2007 में "नेक्सजेन कैपिटल लि. आयरलैंड" से 750 मिलियन डॉलर 2010 में मेच्योर होने वाले सिक्योर्ड फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स जारी करके जुटाए। इमिट्स ने यह पूँजी एफडीआई के रूप में एएए एंड संस इंटरप्राइजेज प्रालि में लगा दी। यह भी अनिल अंबानी की निजी निवेश कंपनी है।


इसके बाद एएए एंड संस इंटरप्राइजेज प्रा.लि. ने यह रकम एएए फैसलिटीज सोल्युशंस के प्रिफेरेंशियल शेयरों में लगा दी। इस कंपनी ने इस पूँजी को एएए पॉवर सिस्टम ग्लोबल प्रालि, एएए इंटरप्राइजेज प्रालि, एएए कम्युनिकेशंस प्रालि और एएए प्रोजेक्ट वेंचर्स प्रालि के प्रिफेरेंशियल शेयरों में लगा दिया। ये चारों कंपनियाँ रिलायंस इनोवेंचर्स प्रालि की उप कंपनियाँ हैं।


जर्सी आईलैंड की बैटिस्टे कंपनी के जरिए 500 मिलियन डॉलर की विदेशी पूँजी को शेयर बाजार में लगाने का सामने आया। मिली जानकारी के मुताबिक बैटिस्टे कंपनी भी एडीएजी समूह की रिलायंस इनोवेंचर्स प्रालि की शत-प्रतिशत उपकंपनी है।


बैटिस्टे ने आईसीआईसीआई बैंक की हांगकांग शाखा से 500 मिलियन डॉलर की पूँजी उठाई। बैटिस्टे ने यह पूँजी एएए कार्पोरेशन प्रालि (अनिल अंबानी की निजी निवेश कंपनी) में लगा दी। वहाँ से यह पूँजी एएए प्रोजेक्ट्स वेंचर्स प्रालि, एएए कम्युनिकेशंस प्रालि, एएए पावर सिस्टम्स ग्लोबल प्रालि और एएए इंटरप्राइजेज प्रालि में लगाई गई।


ये चारों कंपनियाँ एडीएजी की चार लिस्टेड कंपनियों में हिस्सेदार हैं। इन कंपनियों ने यह पूँजी शेयर बाजार में लगा दी। यह निवेश भी इन उपकंपनियों ने बिना भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी के किया और इस मामले की शिकायतें भी कुछ सांसदों ने रिजर्व बैंक और प्रवर्तन निदेशालय से करते हुए एडीएजी पर वित्तीय कानूनों और फेमा के उल्लंघन के आरोप लगाए हैं।

किया

आरकॉम ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश की अपनी आमदनी?

इकोनॉमिक टाइम्स से साभार

माना जा रहा है कि सरकार की ओर से नियुक्त ऑडिटर पारेख एंड कंपनी ने खुलासा किया है कि
रिलायंस कम्युनिकेशन्स (आरकॉम) ने अपनी आमदनी बढ़ा-चढ़ाकर पेश की है। ऑडिटर ने शायद रिलायंस कम्युनिकेशंस द्वारा 2007-08 में आमदनी को 2,915 करोड़ रुपए बढ़ाकर दिखाने की बात कही है। यही नहीं रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 315 करोड़ रुपए की लाइसेंस फीस नहीं चुकाने का भी आरोप लगा है।

आरकॉम एडीए समूह की अगुवा कंपनी है। दूसरी ओर, आरकॉम ने इस खबर को पक्षपातपूर्ण बताया है। आरकॉम के एक अधिकारी ने इस बारे में कहा, 'यह पूर्वाग्रह से प्रेरित है और लगता है कि इसके पीछे हमारे कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्वियों का हाथ है। हमने लाइसेंस की सभी शर्तों का पालन किया है। इस बारे में संपर्क करने पर दूरसंचार विभाग (डॉट) के सूत्रों ने ऑडिटर्स पारेख एंड कंपनी की ओर से ऑडिट रिपोर्ट मिलने की पुष्टि की है। लेकिन उन्होंने कहा कि अभी रिपोर्ट की समीक्षा नहीं की गई है।

इसके आगे उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। आरकॉम के खातों की जांच के लिए सरकार ने 2009 जनवरी में विशेष ऑडिट समिति की नियुक्ति की थी। इसके बाद सरकार ने सभी प्रमुख दूरसंचार कंपनियों के खातों की जांच के लिए ऑडिटर नियुक्त किए। डॉट चार अन्य कंपनियों, टाटा टेलीसर्विसेज, भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया के बारे में भी ऑडिटरों की रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है। डॉट के पास जमा कराई गई विशेष ऑडिट समिति की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि वित्त वर्ष, 2008 में आरकॉम की वायरलेस सेवाओं से आय 12,298 करोड़ रुपए थी जबकि कंपनी ने शेयरधारकों को 15,213 करोड़ की आमदनी बताई थी यानी उसने अपनी आय को 2,915 करोड़ रुपए बढ़ाकर दिखाया था। इसमें यह भी पाया गया कि आरकॉम ने लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम फीस की 315 करोड़ रुपए की हेराफेरी की।ऑडिटरों ने कहा है कि कंसॉलिडेटेड फाइनेंशियल स्टेटमेंट (सीएफएस) में बताए गई कंसॉलिडेटेड वायरलेस आमदनी में 617 करोड़ रुपए की आय भी शामिल है। यह आय समूह की दूसरी कंपनियों को बेचे गए कर्जों से हुई। इसी तरह सीएफएस में 1,352 करोड़ रुपए की कंसॉलिडेटेड वायरलेस आमदनी में एक समय में और अन्य साधनों से हुई आय शामिल है। इस आमदनी को 'अन्य संसाधनों से हुई आय' की श्रेणी में डाला जाना चाहिए न कि वायरलेस आमदनी की श्रेणी में।उधर, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकांउटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के प्रेसिडेंट उत्तम अग्रवाल ने बताया, 'अभी तक किसी ने आईसीएआई में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है। इस बारे में मीडिया की खबरों और दूसरी बातों को देखने के बाद आईसीएआई आरकॉम, डॉट, केपीएमजी और चतुर्वेदी एंड शाह से जानकारी मांगेगी।' आईसीएआई, ऑडिटरों की नियामक संस्था है।

अनिल अंबानी के विदेशी रुतबे से मामले ठंडे बस्ते में

विनोद अग्निहोत्री, नई दिल्ली से नईदुनिया से साभार
अनिल अंबानी समूह का रुतबा सिर्फ देश ही नहीं विदेश में भी है। एडीएजी समूह में रिलायंस कम्युनिकेशंस लि.(आरकॉम) को बेहद ऊँचा दर्जा प्राप्त है। सस्ती मोबाइल फोन सेवा शुरू करके दूरसंचार क्षेत्र में आम आदमी तक मोबाइल फोन पहुँचाने का कमाल करने वाली आरकॉम ने अपने पूँजी खर्च (कैपेक्स) के लिए विदेशों से जुटाए गए २००० मिलियन डॉलर की रकम से १२०० मिलियन डॉलर यानी तब के डॉलर मूल्य के मुताबिक ५१४२ करोड़ रुपए शेयर बाजार में लगाकर मुनाफा कमाने का कमाल भी किया है। कंपनी के खिलाफ भी फेमा का उल्लंघन करने और विदेशों से जुटाई गई पूँजी को शेयर बाजार में लगाने की शिकायतें हैं।

एक तरफ प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की छवि ईमानदारी की है और कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी सामाजिक सरोकार तथा स्वच्छ प्रशासन पर जोर दे रहे हैं। दूसरी तरफ केंद्र सरकार के अधिकारियों के एक वर्ग की चाल बेढंगी है। ऐसा लगता है कि वे गंभीर मामलों को भी ठंडे बस्ते में डाले रहते हैं। जबकि संसद में सरकार खुद मान चुकी है कि एडीएजी की कुछ कंपनियों ने वित्तीय नियमों और फेमा के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

सांसदों के सवाल और प्रधानमंत्री को लिखे उनके पत्र भी नौकरशाही के रवैये पर कोई असर नहीं डाल पा रहे हैं। इधर विरोधी खेमे के कुछ लोगों ने माकपा महासचिव प्रकाश करात समेत वामपंथी नेताओं से भी मुलाकात की। भाजपा नेताओं से भी शिकायतें की गईं। कांग्रेस नेताओं तक भी बात पहँुचाई जा चुकी है।

हिन्दी दैनिक अखबार नईदुनिया के हाथ लगी रिलायंस कम्युनिकेशंस लि. की २००६-०७ ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक ईसीबी (एक्सटर्नल क्रेडिट बॉरोइंग) और एफसीसीबी (फॉरेन करंसी कनर्वेटिबल बांड्स) के जरिए २००० मिलियन डॉलर की पूँजी जुटाई गई। कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक एफसीसीबी जारी करके जुटाई गई पूँजी में से कंपनी ने १३४३ करोड़ रुपए का उपयोग एफसीसीबी जारी करने वाले दस्तावेजों में घोषित उद्देश्य के लिए किया।

शेष ५१४२ करोड़ रुपए जिनका उपयोग नहीं किया गया, उस राशि को बिना ब्याज के अपनी एक उप कंपनी में जमा करा दिया गया।
दिशा-निर्देशों के विपरीत : राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने भी यही कहा है कि उसे प्रबंधन ने जानकारी दी है कि यह राशि एक बैंक डिपॉजिट के रूप में उनकी एक उप कंपनी के ही पास है। सरकार ने संसद में यह भी कहा कि इस तरह अपनी उप कंपनी के पास धन जमा करना ईसीबी के दिशा-निर्देशों के विपरीत है। इसलिए रिजर्व बैंक ने इस मामले को संबद्ध एडी बैंक के साथ नवंबर २००८ उठाते हुए उसकी टिप्पणी माँगी है। वहीं एडीएजी के दिल्ली स्थित प्रवक्ता से नईदुनिया ने जब इस मामले में उनका पक्ष पूछा तो उन्होंने इसे विरोधियों का प्रचार बताते हुए कहा कि यह पुराना मामला है और यह पहले भी मीडिया में आ चुका है।
कार्रवाई की जाए : उधर नईदुनिया में खबर छपने के बाद भाकपा नेता अतुल कुमार अंजान ने माँग की है कि फेमा और दूसरे वित्तीय कानून का उल्लंघन करने वाले पूँजीपतियों पर भी उसी मनी लांड्रिंग कानून के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए जिसके तहत झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा पर मुकदमा दर्ज किया गया है। अंजान कहते हैं कि "एक तरफ तो प्रधानमंत्री कहते हैं कि सीबीआई बड़ी मछलियों को पकड़े, दूसरी तरफ सीबीआई, ईडी, डीआरआई छोटी मछलियों पर तो कार्रवाई करती हैं लेकिन शार्क मछलियाँ खुलेआम देश को लूट रही हैं। सीबीआई और सीवीसी को उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए जो इस मामले में शामिल हैं।" वित्तीय कानूनों के खुलेआम उल्लंघन पर सरकारी एजेंसियों के ठंडे रवैये के इन मामलों को कुछ सांसदों ने संसद में उठाने का फैसला किया है।

अनिल अंबानी के साम्राज्य पर आती नहीं आँच

रिलायंस कम्युनिकेशंस का मशहूर नारा था- "कर लो दुनिया मुट्ठी में।" इस कंपनी के चेयरमैन अनिल अंबानी ने दुनिया तो नहीं, देश की सरकार जरूर अपनी मुट्ठी में कर ली है। सत्ता के गलियारों में, उद्योग जगत की गगनचुंबी इमारतों में और अफसरों के केबिनों में सब कहते हैं कि केंद्र और राज्यों में किसी की भी सरकार हो, लेकिन तूती अनिलभाई की ही बोल रही है। राज्यसभा सांसद के रूप में सत्ता के गलियारों के भीतर तक जा चुके अनिलभाई का दबदबा ऐसा है कि हर सप्ताह, आमतौर पर हर बुधवार कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव और दूसरे कई महत्वपूर्ण सचिव व उच्च अधिकारी छोटे अंबानी की अगवानी अपने दफ्तरों में करते हैं। इसके लिए अनिल हर हफ्ते मुंबई आते हैं। "नईदुनिया" से प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है।
अनिल के करीबी सूत्र भी कहते हैं कि ऐसा वे पिछले कई सालों से कर रहे हैं और महत्वपूर्ण लोगों से अपने रिश्ते तरोताजा करते रहना उनकी पुरानी कार्यशैली है। सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कौन तैनात होगा, इसमें अनिल की दिलचस्पी जगजाहिर है। सत्ता के गलियारों में केंद्र सरकार के कई सचिवों और दूसरे बड़े अधिकारियों की तैनाती और बदली में अनिल व उनके दोस्त राजनेताओं की भूमिका की चर्चा आम है। पूर्वोत्तर समेत देश के कई राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी के फैसले में भी उनके लोगों का दखल जगजाहिर रहा है।
यही वजह है कि अनिल धीरूभाई अंबानी समूह यानी एडीएजी की कई कंपनियों में अरबों रुपए की पूँजी के हस्तांतरण में लगे आरोपों की शिकायतें रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सेबी और दूसरे मंत्रालयों में ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। अदालत के आदेश और संसद में सवालों का भी सरकार पर कोई असर नहीं होता।
अंबानी घराने में बँटवारे के बाद अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) ने पिछले कुछ वर्षों में सफलता की कई नई ऊँचाइयाँ चढ़ी हैं। अमीरी में अनिल अपने बड़े भाई मुकेश से थोड़ा ही पीछे हैं। बिजली, टेलीकॉम, सूचना तकनीक, इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत कई क्षेत्रों में इस समूह ने रिलायंस नामधारी अपनी कई कंपनियों को उतारा है। लेकिन इन कंपनियों के जरिए देश और विदेश में करीब ४८ हजार ४७५ करोड़ रुपए को किस तरह इधर से उधर करके मोटी कमाई की गई है, वह भी कम दिलचस्प नहीं है।
इसके लिए इन कंपनियों द्वारा सरकारी कानूनों, सेबी और रिजर्व बैंक के नियमों और वित्तीय प्रावधानों के उल्लंघन की कई शिकायतें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पास पहुँची हैं। रिजर्व बैंक ने भी कई मामलों में एतराज जताते हुए अपने निर्देश जारी किए हैं। सांसदों ने संसद और सरकार के सामने सवाल उठाए हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय कानून (फेमा) के उल्लंघन को लेकर प्रवर्तन निदेशालय ने एक मामले में इंग्लैंड और स्विट्जरलैंड से जानकारी भी माँगी है। "नईदुनिया" ने इस आशय के जरूरी दस्तावेज भी हासिल किए हैं।
अपनी खोजबीन में "नईदुनिया" को एडीएजी समूह की कंपनियों द्वारा फेमा, सेबी, ईसीबी, आरबीआई और अन्य वित्तीय प्रावधानों व नियमों का उल्लंघन करके अरबों रुपए की रकम इधर-उधर करने के कई मामलों का पता चला है। एडीएजी समूह की कंपनी रिलायंस इन्फ्रा द्वारा ईसीबी (एक्सटर्नल क्रेडिट बारोइंग) नियमों के विपरीत नवंबर 2006 में दादरी बिजली परियोजना के लिए 16.56 अरब रुपए जुटाकर उनका भारत में शेयर बाजार में निवेश कर दिया गया।
रिजर्व बैंक की शिकायत पर यह मामला प्रवर्तन निदेशालय के पास है। आरएनआरएल द्वारा अक्टूबर 2006 में जुटाई गई 13.80 अरब रुपए की एफसीसीबी की रकम में से 12 अरब 65 करोड़ की रकम ईसीबी नियमों के विपरीत भारत में शेयर बाजार में लगाई गई। यह मामला भी प्रवर्तन निदेशालय के पास है। रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरकॉम) द्वारा मार्च 2007 में 92 अरब रु. की ईसीबी व एफसीसीबी की रकम से 55.20 अरब रु. की रकम को अपनी उप कंपनी को बतौर ब्याजमुक्त कर्ज दे दिया, जिसे उस कंपनी ने शेयर बाजार में लगा दिया।
यह मामला रिजर्व बैंक के पास विचाराधीन है। 2006-07 में आरएनआरएल द्वारा 13.80 अरब रु. की एफसीसीबी व रिलायंस इन्फ्रा ने 23.46 अरब रु. की ईसीबी को लंदन में जमा करके ओवरड्राफ्ट लेने, उस रकम को कुछ हीरा व्यापारियों के खातों में स्थानांतरित करके उसे मॉरीशस के रास्ते भारतीय शेयर बाजार में लगाने के आरोपों की जाँच भी प्रवर्तन निदेशालय के पास विचाराधीन है।
हर बुधवार दिल्ली दरबार में : एडीएजी कंपनी समूह के अध्यक्ष अनिल अंबानी हर सप्ताह आमतौर पर बुधवार को दिल्ली आकर कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के प्रमुख सचिव टीके नायर समेत कई सचिवों और अन्य महत्वपूर्ण अधिकारियों से मुलाकात करते हैं। इसकी पुष्टि "नईदुनिया" से सरकारी सूत्रों ने की है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि बड़े उद्योगपतियों की इन मुलाकातों में कोई अनहोनी बात नहीं है। सरकार के साथ राय-मशविरे के लिए ऐसी मुलाकातें होती रहती हैं। यह पूछने पर कि क्या दूसरे उद्योगपति भी इसी तरह वरिष्ठ अधिकारियों से नियमित मिलते हैं और क्या उनके लिए भी कैबिनेट सचिव और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव के पास समय है, तो सरकारी सूत्रों ने कहा कि समय लेकर कोई भी उनसे मिल सकता है।

आरकॉम पर फीस चोरी का आरोप

सरकार द्वारा नियुक्त एक ऑडिटर को संभवत: अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस द्वारा 2007-08 में आमदनी को 2,915 करोड़ रुपये बढ़ाकर दिखाने तथा 315 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस की चोरी का पता चला है। हालाँकि कंपनी ने इस निष्कर्ष को ‘पूर्वग्रह’ से प्रेरित बताया है।दूरसंचार विभाग (डॉट) के सूत्रों ने इस बारे में संपर्क करने पर ऑडिटर्स पारेख एंड कंपनी की ओर से ऑडिट रपट मिलने की पुष्टि की है। लेकिन उन्होंने कहा कि अभी रपट की समीक्षा नहीं की गई है। डॉट आरकाम से इस पर बाद में जवाब देने को कहेगा।आरकाम के प्रवक्ता ने इस बारे में कहा कि कंपनी ने लाइसेंस की सभी शर्तों का पालन किया है। ऑडिटर की कथित टिप्पणी पूर्वग्रह से प्रेरित है और लगता है कि इसके पीछे हमारे कारपोरेट प्रतिद्वंद्वियों का हाथ है। इस गोपनीय रपट के पहले ही मीडिया को लीक हो जाने से लगता है कि विशेष ऑडिटर पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं।उन्होंने कहा कि आरकाम के अंकेक्षित खातों में सभी आय सही तरीके से दिखाई गई है। डॉट के पास जमा कराई गई विशेष ऑडिट समिति की रपट में इस बात का उल्लेख है कि वित्त वर्ष, 08 में कंपनी की वायरलेस आय 12,298 करोड़ रुपये थी, जबकि कंपनी ने शेयरधारकों को 15,213 करोड़ की आमदनी बताई थी। यानी कंपनी ने अपनी आय को 2,915 करोड़ रुपये बढ़ाकर दिखाया था।इसमें यह भी पाया गया कि आरकाम ने लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम फीस की 315 करोड़ रुपये की हेराफेरी की। डॉट चार अन्य कंपनियों..टाटा टेलीसर्विसेज, भारती एयरटेल, वोडाफोन तथा आइडिया के बारे में भी उनके खातों की जाँच के लिए नियुक्त ऑडिटरों की रपट का इंतजार कर रहा है। यदि जरूरी हुआ तो डॉट रपट की समीक्षा के बाद उचित कार्रवाई करेगा।सूत्रों ने रपट के हवाले से कहा है कि दूरसंचार कंपनी ने संभवत: ट्राई और डॉट के नियमों का भी उल्लंघन किया है।सूत्रों ने कहा कि आरकाम पर रपट की अब डॉट द्वारा नियुक्त सदस्य (वित्त)की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय समिति द्वारा जाँच की जाएगी।यह विशेष ऑडिट इस बात का पता लगाने के लिए कराया गया है कि कहीं कंपनी ने अपनी आय को कम लाइसेंस शुल्क वाले वर्ग में स्थानांतरित तो नहीं किया था। सूत्रों ने कहा कि ऑडिट के दौरान गड़बड़ी का पता लगने पर आपरेटरों पर लाइसेंस के प्रावधानों के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है।